Monday 7 March 2016

बरसों हुए होंगे

बरसों हुए होंगे
याद नहीं है अब,
बरसों हुए होंगे,
रोए ज़ार ज़ार,
रूह की तकलीफ़ जज़्ब ना हो क़तई,
कुछ यूँ के देह काँप जाए,
वक़्त के उस लम्हे में,
एहसास जब चुक जाएँ सभी,
सिर्फ़ साँस सुनायी दे सिसकी सी,
बरसों हुए यूँ रोए ज़ार ज़ार,
और यूँ भी नहीं के,
ज़ब्त है अब ...
विनी
२१/२/१६

1 comment:

  1. ज़िंदा रहने का कुछ ऐसा अंदाज रखो,
    जो तुमको ना समझे उन्हें नज़रंदाज रखो !

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