Tuesday, 22 March 2016

आज




आज 
आज एक नए साफ़ सफ़े पर,
एक नयी सहर लिखी,
कुछ सिमटी सी कुछ अनखिली,
फिर एक नया दिन लिखा,
कुछ श्वेत सा कुछ श्याम सा,
फिर एक नयी शाम लिखी,
कुछ धुआँ धुआँ कुछ अनबूझ सी,
फिर एक नयी शब लिखी,
कुछ बोझिल सी कुछ खिली खिली,
बस आज यही लिखा,
और कुछ ना हुआ ...
- विनी
१७/१२/१५

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