Thursday, 10 March 2016

तुम






तुम 
पिछले बरस फूल थे 
रंग थे शबनम थी बहार थी 
संगमरमर पर उजली धूप बिखरी थी 
सातों रंगों में खिली खिली
तितलियाँ ख़ुश थी सभी
इसलिये के तुम थे
इस बरस
शाम उदास रहती है, रात उदास
रंग गुम गए हैं कहीं
तितलियों ने छोड़ दिया है देश
धूप की तपिश रूह को झुलाए जाती है
इस बरस, शाम उदास है, रात उदास
इसलिए के तुम नहीं हो ...
विनी
११/१/१६

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