तुम
पिछले बरस फूल थे
रंग थे शबनम थी बहार थी
संगमरमर पर उजली धूप बिखरी थी
सातों रंगों में खिली खिली
तितलियाँ ख़ुश थी सभी
इसलिये के तुम थे
इस बरस
शाम उदास रहती है, रात उदास
रंग गुम गए हैं कहीं
तितलियों ने छोड़ दिया है देश
धूप की तपिश रूह को झुलाए जाती है
इस बरस, शाम उदास है, रात उदास
इसलिए के तुम नहीं हो ...
विनी
११/१/१६
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