Thursday 24 March 2016

राह

राह 
इस बेमहरम से मौसम में,
मुझ पर ये ख़ौफ़ भारी है,
वो जो मिला था आज राह में,
वो कल भी मेरी राह से गुज़रेगा के नहीं,
वो फिर पुकारेगा के नहीं,
वो फिर दिल में उतरेगा के नहीं,
हर्फ़ हर्फ़ लफ़्ज़ लफ़्ज़,
फिर यूँ लगता है मुझे,
वो आज तो आया था,
वक़्त मुस्कुराया था,
कुछ दूर साथ भी चले थे हम,
कल की किसको ख़बर,
वो हो के ना हो हमसफ़र,
या फिर मैं रहूँ ना रहूँ,
इसी सफ़र की,
उसी राह की ...
विनी
२४/३/१६

No comments:

Post a Comment