Saturday, 12 March 2016

नज़्म

नज़्म 
वोह बहुत दूर से पूछता है हाल मेरा,
रात बहुत सर्द है, ये कैसे कहते हैं ?
यूँ तो किसी साये ने सताया नहीं दिन भर, 
लेकिन धूप में तपिश बहुत है, कैसे कहते हैं? 
गूँजतीं हुई तन्हाई की ख़ामोश सी आवाज़,
इस ज़बान में ख़ैरियत कैसे कहते हैं?
बँट गए हैं हम ज़र्रा ज़र्रा दामन दामन,
इस बात को आख़िर कैसे कहते हैं?
नाम ले कर उस का पुकारा मूसलसल,
जैसे वोह सुन ले वैसे,कैसे कहते हैं ?
हमने क्या ना कहा, उस ने क्या ना सुना,
जो उनकही रह गयी वोह बात कैसे कहते हैं?
सुबह का गया वोह लौटा नहीं शब भर
हमें इंतज़ार है बहुत, ये कैसे कहते हैं ?
लौट आए हम जो गए थे मस्जिद दुआ माँगने,
जो जानता हो सब कुछ उस से अपनी बात कैसे कहते हैं ?
-विनी
२०/१२/१५

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