Thursday, 29 May 2014

धूप किनारा twilight





धूप  किनारा 
रात अचानक नहीं आती, 
न दिन की धुप चढ़ती है, 
पूरी की पूरी, यक ब  यक, 
एक वक़्फ़ा  रहता है हमेशा, 
दोनों वक़्तों के दरमियाँ, 
उस लम्हा यूं लगता है जैसे , 
कुछ बदला न हो,
लेकिन महसूस करो तो,
दिखाई देता है,
कुछ घटता जाता है, 
कतरा कतरा ख़ारिज होता जाये जैसे, 
और इन्ही  वक़्तों में ,
उस अजनबी सी चाप पर कान लगा , 
हमें पढ़ लेना होता है, 
कुदरत के उन बारीक इशारों को, 
जिनमे आने वाले वक़्त का, 
नया निज़ाम छिपा  रहता है,
इन्ही धूप  किनारा वक़्फ़ों  में...
~ विन्नी 
२८/५/१४ 

  Twilight
Raat achanak nahin aati
Na din ki dhoop chadhti hai
Poori ki poori yak ba  yak
Ek waqfa rehta hai hamesha,
Donon waqton ke darmiyan
Us lamha  Yoon lagta hai
 jaise kuch badlla na ho,
Lekin mehsoos karo to
 dikhayee deta hai
Kuch ghatta jaata hai
Katara katra kharij hota jaiye jaise
Aur inhee waqton main
us ajnabi see cahaap par kaan laga
Hamen padh lena hota hai
kudrat ke un bareek isharon ko
jinme Aane wale waqt ka 
naya nizam chipa rehta hai
inhee dhoop kinara waqfon main…
~Vinny
28/5/14

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