Thursday, 22 May 2014

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे bol kelab aazaad hain tere...

बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे

came up in a conversation today 
the necessity of this kind of freedom
the very quintessence of the human condition...
Faiz, at his very best
बोल कि लब आज़ाद हैं तेरे
बोल ज़बाँ अब तक तेरी है
तेरा सुतवाँ जिस्म है तेरा
बोल कि जाँ अब तक् तेरी है
देख के आहंगर की दुकाँ में
तुंद हैं शोले सुर्ख़ है आहन
खुलने लगे क़ुफ़्फ़लों के दहाने
फैला हर एक ज़न्जीर का दामन
बोल ये थोड़ा वक़्त बहोत है
जिस्म-ओ-ज़बाँ की मौत से पहले
बोल कि सच ज़िंदा है अब तक
बोल जो कुछ कहने है कह ले 
~ Faiz Ahmad Faiz

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