Thursday, 3 April 2014

Faraz...!!!

सिलसिले तोड़ गया वो सभी जाते-जाते...
वरना इतने तो मरासिम थे कि आते जाते...

कितना आसाँ था तेरे हिज्र में मरना जानाँ,
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते-जाते...

-अहमद फ़राज़

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