Sunday, 31 August 2014

telephone टेलीफोन

disembodied voices tell intense tales...


टेलीफोन 

मैं,

हज़ार बंदिशें लगती हूँ खुद पर, 

लाज़िम है, खुद को यकीन दिला , फ़ोन करती हूँ ..

दिल की धड़कन के शोर के बीच, 

सुनायी देती है तुम्हारी आवाज़... 

तुम,

जो नहीं कहते वह सुनायी क्यों देता है? 

लफ़्ज़ों की बंदिश, साँसों का ठहराव, आवाज़ की लरज़,

कितनी बातें करते हैं ये सब,

और वह जो मुझे कहना था, 

तुमने सुना ना... 

~विन्नी 

१३/३ १४ 


Telephone 
Main ,
hazar bandishen lagaati hoon khud par
Lajim hai, khud ko yakeen dila
Phone karti hoon,
Dil ki dhadkan ke shor ke beech,
Sunayee deti hai tumhari aawaz...
Tum,
jo nahin kehte woh sunayi kyon deta hai?
Lafzon ki bandish, saansoon ka thehraav, aawaaz ki laraz
Kitnee baten karte hain ye sab
Aur woh jo mujhe kehna tha?
Tumne suna na?
~Vinny

17/3/14

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