तुम
रात की सियाही में रंग भर
किस क़दर हसीन तस्वीरें बनाते हो
चेहरा सुनहरा लब सुर्ख
बादलों सी ज़ुल्फ़, समुन्दर सी आँखों,
खुद को ही नहींपहचान पाती मैं
तुम,
मेरी बिखरी ज़ुल्फ़ के पेचो ख़म में गुम
महकते ख्यालों में गर्त करते हो दिन ओ रात
मैं,
सोचती हूँ कभी उस तस्वीर से निकल
दस्तक दूँ तुम्हारे द्वार
घर आने की हसरतें लिए
तो ख्वाबों की उस हसीन बस्ती से निकल
तुम मेरे लिए , द्वार खोलोगे क्या ?
ये ख्याल सताता है अक्सर की मुझ ये ज्यादा
मेरी वोह तस्वीर प्यारी है तुम्हे....
~ विन्नी
१०/६/१४
Tum
Raat ki siyahi main rang bhar
kis qadar hassen tasveeren banate ho
Chehra sunhara, lab surkh
Badlon see julf
Samundar see aankhen
Khud ko nahin pehchaan paati main!
Tum,
Meri
bikhari zulf ke peacho kham main gum
Mehkate khayalon main
Gart karte ho din o raat
Main
Sochtee hoon kabhi
Us tasveer se nikal , dastaak doon tumhare
dwar
Ghar aane ki hasraten liye
To khwabon ki us hassen basti se nikal
Tum mere liye, dwar khologe kya?
ye khayal stata hai aksar
ke mujh se jyada,
meri woh tasveer pyari hai tumhe...
ye khayal stata hai aksar
ke mujh se jyada,
meri woh tasveer pyari hai tumhe...
~Vinny
10/6/14
ग़मों की शिद्दतों को आंसुओं से जान लेते हैं,
ReplyDeleteधुएँ की शक्ल से हम आग को पहचान लेते हैं.