Saturday, 12 December 2015

ख्वाब





ख्वाब 
चिरांग जले एक ख्वाब उतरा, 
वक़्त की देहलीज़ पर, 
बैठा है खामोश, 
के कब नींद टूटे, 
और देख ले उसे भी कोई,
आँख भर...
इससे पहले के,
सहर हो,
और बिखर जाए,
उस का वजूद,
ज़र्रा ज़र्रा,
कोई देख ले उसे भी ,
आँख भर.
~ विन्नी
११/१२/१५

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