Friday, 4 November 2016

ट्रैफ़िक




 ट्रैफ़िक 
आज फिर पुल पर बहुत ट्रैफ़िक था,
ग़र्म शोले सी हो चली थी गाड़ी,
यूँ लगा मुझे के हम सब बूढ़े हो चले हैं जैसे,
मेरा शहर, उसकी सड़कें, और मैं, 
यूँ हम सब जवान थे कभी,
चमचमाते, तेज़ रफ़्तार, कहीं जाना था, कोई मंज़िल थी ,
जाने ये कब हुआ, कैसे हुआ के,
वक़्त ने चमक छीन ली, रफ़्तार थाम ली,
मंज़िलें भुला दीं,
अब सड़कों के रंग उतर गए हैं, शहर सुस्त है और मैं थक गयी हूँ,
कुछ यूँ के अब कहीं पहुँचने की कोई जल्दी नहीं,
ट्रैफ़िक में फँसी ग़र्म शोले सी हो चली गाड़ी में
बैठे रहना भी,
कोई तिलमिलाहट नहीं पैदा करता,
बस एक इंसानी बेबसी सी है,
पुल के इस पार से उस पार तक के सफ़र की,
और इस पुल पर भी,
ट्रैफ़िक बहुत है...
-विनी ४/११/१६

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