Saturday, 19 November 2016

निज़ामुद्दीन रेल वे स्टेशन

निज़ामुद्दीन रेल वे स्टेशन
उम्र से पहले बूढ़े हो चले
घिसे पिटे से लोग
वक़्त ने रगड़ रगड़ काठी झुका दी है 
ग़ुरबत कन्धों पे ढो रहे लोग
नज़र नीची आवाज़ सुस्त
भीड़ बहुत है
और अकेलापन भी
सीढ़ियों से ऊपर नीचे जाते
कोई किसी का बोझ साँझा नहीं करता
कोई मुस्कुराता भी नहीं
सभी अपने अपने खाँचे में बंद हैं
ट्रेन के डब्बे हों जैसे
जुड़े जुड़े भी कटे कटे भी
जाना सभी को वहीं है
लगाम किसी और के हाथ है
बड़ी बेबसी की बात है ...
-विनी
१३/११/१६

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