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Sunday, 23 October 2016
धूप छांव
कुछ धूप है, कुछ छांव सी, कुछ ज़िंदगी की मानिंद, कभी धूप सी खिली हूँ मैं, कभी रात सी मुरझाई भी, यूँ तो ख़ुद में मुकम्मल हूँ मैं, और यूँ भी है के, तुझ बिन कुछ अधूरी हूँ मैं.. -व २१/१०/१६
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