Sunday, 15 May 2016

बहार

बहार 
सुना है बहार बस आने को है 
सूखी शाखें सब्ज़ हुआ चाहती है 
गुल सुर्ख़ हुआ चाहते है 
हवाएँ नरम हुआ चाहती हैं 
हाँ दिन का आसमा नीला है 
और रात का चाँद रोशन 
एक अजब धड़कन सी सुनती है 
गुन गुन गुन गुन 
और दिल की सख़्त दीवारों पर 
एक नया हरा ख़्वाब उग आया है 
सुना है बहार बस आने को है ..
सुना है बहार बस आने को है 
नए एहसास मेहमान हुआ चाहते हैं 
नग़मा बन एक तबससुम लिपटा है लबों से 
मद होश कोई जाम ख़ुद ही छलक जाए जैसे 
और एक चाप सी कहती है 
सुन सुन सुन सुन 
हाँ आँख नम है और धड़कन तेज़ 
लहू की रवानी में नयी लय सी है 
और दिल को उसकी आमद का 
इंतज़ार है शायद 
सुना है बहार बस आने को है...
विनी 
सिमला 
२९/३/१६

2 comments:

  1. भाव संप्रेषण प्रभावशाली है।

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  2. भाव संप्रेषण प्रभावशाली है।

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