निराकार
विचार से उपजता है सभी कुछ,
मूर्त , अमूर्त ...
परन्तु आकार लेने की कुछ मर्यादाएं हैं...
मट्टी को नमी चाहिए, दो हाथों का सहारा चाहिए,
एक चाक के रथ पर सवार, दुनिया की सैर चाहिए,
एक सांचे की स्थिरता चाहिए ,
सैय्यम , शक्ति, हृदयस्थल में स्वीकृति ...
तभी पूर्ण होता है सृजन चक्र,
यूं तो अनगढ़ नहीं हूँ मैं ,
बस मुझे पूर्ण आकार ही न मिल सका ...
विन्नी जैन
२९/४/१३
विचार से उपजता है सभी कुछ,
मूर्त , अमूर्त ...
परन्तु आकार लेने की कुछ मर्यादाएं हैं...
मट्टी को नमी चाहिए, दो हाथों का सहारा चाहिए,
एक चाक के रथ पर सवार, दुनिया की सैर चाहिए,
एक सांचे की स्थिरता चाहिए ,
सैय्यम , शक्ति, हृदयस्थल में स्वीकृति ...
तभी पूर्ण होता है सृजन चक्र,
यूं तो अनगढ़ नहीं हूँ मैं ,
बस मुझे पूर्ण आकार ही न मिल सका ...
विन्नी जैन
२९/४/१३
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