जलती बुझती सी रोशनी के परे
रहते हैं अब कितने ख़्वाब नए
सुनहरी धूप के ख़्वाब
और स्याह रातों के भी
रहते हैं अब कितने ख़्वाब नए
सुनहरी धूप के ख़्वाब
और स्याह रातों के भी
मुलायम ,खुशबुओं में लिपटी महकी सीं
बात करती हवाओं के और
तुम्हारी छत पर बरसती बूँदों के
उस आँगन में खड़े बोराए आम की ख़ुशबू
सब्ज़ पत्तों के रंग
और वो जो टूट कर बिखर गए थे कभी
उन सूर्खरूह एहसासों के भी
और है एक आस
आज की कल की
आने वाले सभी मौसमों की
और हैं उन क़दमों के कुछ निशान
वक़्त की परवाज़ से कुछ पीछे ही चलते रहे जो
सितारों में सफ़र करते उस तनहा से चाँद के ख़्वाब
उस जलती बुझती रोशनी के परे
अपना एक जहाँ आबाद करते हैं...
-विनी
१३/४/१६
बात करती हवाओं के और
तुम्हारी छत पर बरसती बूँदों के
उस आँगन में खड़े बोराए आम की ख़ुशबू
सब्ज़ पत्तों के रंग
और वो जो टूट कर बिखर गए थे कभी
उन सूर्खरूह एहसासों के भी
और है एक आस
आज की कल की
आने वाले सभी मौसमों की
और हैं उन क़दमों के कुछ निशान
वक़्त की परवाज़ से कुछ पीछे ही चलते रहे जो
सितारों में सफ़र करते उस तनहा से चाँद के ख़्वाब
उस जलती बुझती रोशनी के परे
अपना एक जहाँ आबाद करते हैं...
-विनी
१३/४/१६
टूट कर बिखरना और बिखरकर लुप्त होने का अनुभव जीवन को मूल्यवान बनाता है।
ReplyDeleteटूट कर बिखरना और बिखरकर लुप्त होने का अनुभव जीवन को मूल्यवान बनाता है।
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