Saturday, 7 May 2016

एक तनहा से चाँद के ख़्वाब



एक तनहा से चाँद के ख़्वाब
जलती बुझती सी रोशनी के परे 
रहते हैं अब कितने ख़्वाब नए 
सुनहरी धूप के ख़्वाब 
और स्याह रातों के भी 
मुलायम ,खुशबुओं में लिपटी महकी सीं
बात करती हवाओं के और 
तुम्हारी छत पर बरसती बूँदों के 
उस आँगन में खड़े बोराए आम की ख़ुशबू 
सब्ज़ पत्तों के रंग 
और वो जो टूट कर बिखर गए थे कभी 
उन सूर्खरूह एहसासों के भी 
और है एक आस 
आज की कल की 
आने वाले सभी मौसमों की 
और हैं उन क़दमों के कुछ निशान 
वक़्त की परवाज़ से कुछ पीछे ही चलते रहे जो 
सितारों में सफ़र करते उस तनहा से चाँद के ख़्वाब 
उस जलती बुझती रोशनी के परे 
अपना एक जहाँ आबाद करते हैं...
-विनी 
१३/४/१६

2 comments:

  1. टूट कर बिखरना और बिखरकर लुप्त होने का अनुभव जीवन को मूल्यवान बनाता है।

    ReplyDelete
  2. टूट कर बिखरना और बिखरकर लुप्त होने का अनुभव जीवन को मूल्यवान बनाता है।

    ReplyDelete