Sunday, 28 June 2015

ग़ज़ल gazal

ग़ज़ल
यूं हुआ के जो न होना था , न हुआ ,
हमें यकीन न था, उसे ऐतबार न हुआ।

बार बार गुज़रा है वक़्त के कोई तो पुकार ले,
कोशिशें बहुत कीं फिर भी  हम से ये न हुआ।

तेरे दर से लौट तो आये हम लेकिन ए मेरे मेहबूब ,
फिर यूं हुआ के हम से तुझ तो छोड़ के जाना न हुआ।


दफन कर दी है हमने गुज़रे हादसों की फेहरिश्त ,
क्या क्या न हुआ , बस हम से बयां ही न हुआ।

अबके बहार आये, के न आये, गुल खिले के न खिलें ,
मुददत हुई किसी की आमद का यकीन ही न हुआ।

न तू लौटा ,न फ़िज़ा बदली, न सुकून ठहरा ,
यूं गुज़रा तेरा जाना, के फिर आना न हुआ।

उसकी पेशानी की सिलवटों में लिखी है एक इबारत ,
नज़र भर हम भी पढ़ सकें ,मुक़द्दर न हुआ। 

राह चलते कितने फित्ने हमें आवाज़ देते रहे ,
किस ओर मुड़  जाएँ, हमसे ये फैसला न हुआ।

तेरी दुआ में जाने क्या तासीर  थी मेरे रकीब ,
के मेरा मर्ज़ बढ़ता ही गया , शिफ़ा न हुआ।

खुल्द से बेज़ार हुए तो इंसान हुए हम,
नाखुदा तू भी इंसान हुआ, खुदा न हुआ।

ज़माने ने समझाया बहुत, इलज़ाम दिए, सज़ाएं बक्शी ,
हम क्या कहें, हमसे इश्क़ तो हुआ, गुनाह न हुआ।
विन्नी
२६/६/१५

Vinny
26/6/15

Gazal
Yoon hua ke Jo Na hona tha, na hua,
Hume yakeen' na tha,  use eitbaar na hua . 

Bar bar guzra hai waqt ke koi to pukar le,
Koshishen bahut ki phir bhi humse ye na hua.

Tere dar se laut to aaye hum lekin e mere mehboob,
Phir yoon hua ke hum se tujh ko chod ke jaana na hua.

Dafn Kar de hai humne guzare hadson ki fehrisht,
Kya Kya  na  hua,  bas humse bayan' hee na hua.

Aabke bahaar aaye ke na aaye, gul khile ke na khilen'
Muddat huee, kisi ki aamad ka yakeen hee na hua.

Na tu lauta, na fiza badli,na sukoon dhehra,
Yoon guzra tera jaana, ke phir aana na hua.

Uski peshani ki silwaton main likhee hai ek ibarat,
Nazar bhar hum bhi padh saken muqaddar na hua.

Raah chalte kitne fitne hamen aawaaz dete rahe,
Kis oar mudh jayen humse,ye faisla  hee na hua.

Teri dua main jaane Kya tasser thee mere raqeeb ,
Ke mera Marz badhta hee raha, shifa na hua.

Khuld se bezaar hue, to insaan' hue hum,
nakhuda tu bhi insaan' hua , khuda na hua. 

Zamane ne samjhaya bahut, ilzaam diye, sazayen bakhsheen,
Hum Kya kahen, humse, Ishq to hua, gunah na hua. 


Vinny
26/6/15



3 comments:

  1. बहुत ही बेहतरीन गजल है एक एक शेर उमदा है और बार बार पढ़ने को जी करता है
    किसी शायर ने क्या खूब कहा है
    हम दुआ लिखते रहे वो दगा पढ़ते रहे
    एक नुक्ते ने महरम से मुजरिम बना दिया

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