Monday, 5 November 2018

पतझड़







पतझड़ 

तुम,
दरिया के पार जो गए 
कोई सदा लौट कर  नहीं आयी,
चाँद उग आया है आज, शब् ढले  
हवा अब सर्द है और रात सियाह, 
और ये एक चाँद काफी नहीं दिल को रोशन करने को, 
मैं,
साहिल पर खड़ी 
सदियों से इंतज़ार में हूँ,
किसी एक रात में दो दो चाँद दिखें 
और तुम लौट आओ
यूं  ये महज़ एक ख्वाब हो शायद 
या कोई वहम, 
वक़्त के इस लम्बे वक़्फ़े में, 
सब अनबूझ सा लगता है, 
बस ये एक चाँद है, मैं  हूँ 
और है एक आस, 
दरिया के पानियों सी 
उठती , बुझती,
और हवाएं अब सर्द  हैं 
~ विन्नी 
४/११/१८ 




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