Thursday, 14 December 2017

safar

सफर

कभी किसी  सफर में दो मुसाफिर मिले
कुछ दूर साथ चले तो
 बात भी हुई
वो कहते हैं ना
जो खुश हैं, सभी एक से हैं
ये  जो गम हैं, वही हैं अनेक
हर दिल को सालने वाली चुभन
अपने आप में अनोखी है ,
शायद इसी लिए जब तक बात ख़ुशी की थी
दोनों की एक सी थी
फिर जब बांटा  वो जो  दिल को  सालता है भीतर ही भीतर 
लगा नहीं ये मैं नहीं
ये तुम हो, कोई और हो, कहीं और से आये हो,
कोई और ही सफर है तुम्हारा
वो जो नहीं है मेरा, नहीं हो सकता मेरा 
उसी पल में बदल गया मन का मौसम 
एक बेरुखी आ बैठी बीच
और वे जो एक हो सकते थे
फिर से अपने अपने कोनों में  सिमट  गए
रेल गाड़ी स्टेशन पर रुकी
और अपना अपना बोझा लिए
अपने अपने घर को लौट आये
दो मुसाफिर। ..
- vinny
१४/१२/१७