Wednesday, 29 June 2016

29/6/16

29/6/16

खामोश सी सेहर थी ,
कुछ भी गैर मामूली न था,
फिर यकबयक,
एक अज़ीब उथला पुतला सा दिन गुज़रा,
कुछ तनहा कुछ उदास सी शाम,
अब रात आ बैठी है देहलीज़ पर,
जाने किस सबब गुज़रे,
सेहर हो तो सांस आए ..

~ विन्नी 29/6/16

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