Budh Purnima
किन फिकरों में गुम रहते हो
चलो शुरू से शुरू करते हैं
उस दिन से जब चाँद नय़ा रहा होगा
बारीक एक लकीर सा आसमां में टंगा
कुछ डरा भी होगा घबराया भी
सब कुछ नया जो था
आसमां नया , तारे अजनबी हावायें अंजान
दुनिया की किसी शेह् से कोई वाकफियात ना थीं
बेमानी से दिन और अफसुर्दा रातें गुज़री होंगी
और फिर उसके साथ भी वही हुआ होगा
राह में , सफर में , मांजिलों की जुस्तजू में
लोग मिले होंगे , दोस्त बने होंगे,
कुछ देर साथ भी चले होंगे
एक राह पर उस मोड़ तक
जहां तक रास्ते यक्सां रहे होंगे
अब इस लमहे में उस चाँद का क्या हुआ होगा ?
वही जो हुआ करता है
उस सफर में, उस उम्र के बीते हुए दिनों ने
समझ दी होगी उसे , और हौंसला और कुछ बेफिकरी भी
बिलौस चमक और पूरे शबाब के साथ
अपनी राह पर चलते रहने की
अपनी उम्र जी लेने की
आखिर और किस लिए ज़लता बुझता है चाँद ...
-विन्नी
बुध पूरनिमा 22