सेमुल
भीतर लगी अगन
बाहर फूट पड़ी हो जैसे
शाख़ पर सुर्ख फूल ही फूल
कोई सब्ज़ पत्ता बाक़ी नहीं
हसीं दिलनशीं दिलकश,
फरेब है लेकिन
नज़र भर का
खोखला है फूल का अन्तःकरण
कुछ सेहरा में मोह्बत की आस की मानिंद
कोई सुकून नहीं
बस फरेब है
नज़र भर का
~ विन्नी
१०/३/२०१८.